Thursday, April 16, 2020

आधुनिकता का अहंकार !

आधुनिकता का अहंकार 👇

ऋषियों ने कहा कि 👉जीवन यज्ञ है !
बिल्कुल सही कहा "यज्ञ का अर्थ होता है शरीर के सहारे आत्मा की उन्नति,  और आत्मा की उन्नति का अर्थ है जगत के कल्याण की कामना, दया, करुणा, परोपकार,यहीं आत्मा की उन्नति का मार्ग है !

संसार मे रहकर सुखी जीवन की कामना किसे नहीं ! चर -चराचर में  उपस्थित सभी प्राणी परम सुख की प्राप्ति ने निरंतर कार्यरत है !
लेकिन सुख  की प्राप्ति किसकी क़ीमत पर !भौतिक विकास की अंधी दौड़ मे प्रश्न यह कि 👇
क्या पृथ्वी को जीवन विहीन कर देने से मनुष्य जाति परम सुख को प्राप्त कर लेगा ! या प्रकृति की व्यवस्था को अव्यवस्थित करके और पर्यावरण को छिन्न भिन्न करके परम सुख की प्राप्ति संभव है 👉कभी नहीं !
क्युकि मनुष्य अपने भौतिक विकास की अंधी दौड़ मे एक बड़ी भूल कर दिया कि मनुष्य जाति का अस्तित्व इसी प्रकृति मे निहित है ! प्रकृति की  इस व्यवस्थाक्रम से अलग मनुष्य जाति का कोई औचित्य नहीं है !

पिछली शताब्दीयों मे हुए वैज्ञानिक खोजो और प्रौद्योगिकी उन्नति ने मनुष्य के अहंकार को बहुत बड़ा बना दिया ! चाँद की सतह पर अपना विजय पताका फहराने के उपरांत मानव जाति को लगने लगा की अब वही ब्रह्म है ! वो जो चाहेगा पृथ्वी पर वही होगा !

ऋषियों की हजारों वर्षो की तपस्या से प्राप्त अध्यात्मिकता उसे तुच्छ दिखाई देने लगी थी ! योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, और गृह, नक्षत्रीय विधि नियमों को अज्ञानता समझने लगा था !
आधुनिकता के चकाचौंध मे मनुष्य अध्यात्मिकदेवता को गलियां देने लगा ! सहयोग और सहअस्तित्व जीवन की परम्पराओं को ढोंग कहने लगा ! धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधि को पाखंड कहा गया !
जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी जैसे परम पुन्य विचारों, धारणाओं को अज्ञानता का द्योतक माना गया ! क्युकि इस धारणा मे पृथ्वी को ममतामयी माता कहा गया था ! क्युकि उसने  पर्यावरण मे निवास करने वाली समस्टि को अपने समतुल्य मानकर उनकी रक्षा का व्रत लिया था ! सहकारिता और साहचर्य की दिव्य भावना को मूढ़ता की संज्ञा देकर उपहास उड़ाया गया ! क्यकि हमने वृक्षों और नदियों की पूजा किया ! पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने और मानव जाति के अस्तित्व को निरंतर बनाये रखने हेतु वनो और वन्य जीवों की सुरक्षित बनाये रकने हेतु शाकाहारी धर्म की स्थापना किया ! सनातन की परंपराओ को अव्यवहारिक और पाखंड कहकर पाश्चात्य लोगों ने मज़ाक बनाया !
युग बीतता गया और हमें अंधभक्त कहा गया !

पृथ्वी की आत्मा को नेष्टनाबूंद करके,  जंगलो पहाड़ो को काटकर मिट्टी के घरों के स्थान पर ऊँची ऊँची गगनचुम्बी अट्टालिकाएं,  महल बनाये गये ! चौड़ी सड़के, हजारों किलोमीटर के हाइवे और उन पर दौड़ती करोड़ों की गाड़ियां ! घोड़ा गाड़ी के स्थान पर,  रेल गाड़ियां,  हवाई जहाज ! समंदर मे तैरते जलयान सबकुछ बनाया हमने !
क़ृषि और पशुपालन की जगह हमने विशाल  कल कारखाने और प्रौद्योगिकी से सुसज्जित उद्योग स्थापित किये ! हमने बड़े बड़े माल भी बनाये !
सच मे यह मानव बुद्धि का ही कमाल है जिसने यह सबकुछ किया है ! विज्ञानं ने बड़ी तरक्की की है ! विज्ञानं ने धरती आकाश को एक कर दिया ! हजारों किलोमीटर की दूरियां मिटाकर रख दिया ! सारे एसो आराम की व्यवस्था किया है !

लेकिन मानव जाति मे कहीं कुछ कमी रह गई,  कहीं थोड़ी भूल कर दी हमने !
युग परिवर्तन और विज्ञान के उदय के साथ साथ मनुष्य मे अहंकार ने जन्म लिया ! उसे लगने लगा कि अब वो अजेय है ! उसे लगा कि अब उसे सनातन पद्धतियों, आचार -विचारों  और मानव विधियों कि आवश्यकता नहीं है ! हमने बड़ी तरक्की कर लिया !

इसी कड़ी मे मनुष्य ने जो सबसे बड़ी भूल की वो यह क़ि 👉 मनुष्य ने विचारकों  बुद्धिजीवीयों  और वैज्ञानिको की अवहेलना किया ! जीवन निर्माणकारी वर्ग को तीसरी श्रेणी का व्यक्ति समझा जाने लगा !
वैज्ञानिक संसाधनों के उत्कर्ष में  सामाजिक, आध्यात्मिक चेतना के विकास मे लगे हुए गुरुओं और प्राध्यापको को अपमानित किया जाने लगा ! समाज निर्माण और जीवन निर्माण मे लगे हुए अविष्कारक हुतात्माओ को अपमानित किया जाने लगा !

इनके स्थान पर किसे तरजीह दिया गया !👇
चोर उचक्कों, धर्म के ठेकेदारो को, समाज के लुटेरों को जो समाज को लूटकर खुद को पैसे वाले बना लिये !
भ्रस्टाचार से पैदा होने वाले करोड़पतियों, अरबपतियों को,  मनोरंजन करने वालों को जो नौंटकी करके समाज का मनोरंजन किया करते थे उन्हें सितारे और किंग जैसे उपाधि से विभूषित किया गया ! क्रीड़ा और खेल करने वालों को सर आँखों पर बिठाया गया और उन्हें करोड़पति, अरबपति बनाया गया ! नंग धड़ंग सामाजिक  जीवन पद्धतियों को आधुनिकता का नाम दिया गया !
काम, वासना और सत्ता लोलुपतावादी इंसानों को सरताज बनाया गया !
इसके परिणाम हुआ क्या 👇
जिन्हे कभी समाज सर आँखों पर बैठाता फिरता था उसको तिरस्कृत करने की परंपरा अपनाई जाने लगी !  समाज, व्यवस्था निर्माण मे जिनकी अहम् भूमिका रही जिनके कर्म आचरणों और उद्यमिता से मानवता विकसित होती रही उन्हें समाज ने तुच्छ मानकर अपमानित किया !
उनकी आत्मा तिरस्कृत होकर ज्ञान विहीन और विचार विहीन होती रही ! लेखक, विचारक और वैज्ञानिक अपनी निजी रोजी रोटी के जुगाड़ मे लग गया !
एक तरफ नाचने, गाने बजाने वालो का उदय हुआ तो वही दूसरी तरफ वैज्ञानिक व आध्यात्मिक चेतना का लोप होने लगा ! वैचारिक प्रतिभा का लगातार तिरस्कार ने समाज को प्रतिभा विहीन बना दिया !
अब आते है असली मुद्दे पर 👇
काल के कपाल पर हाहाकार मचा रहा कोरोना और मनुष्य के अस्तित्व बीच चल रहा महायुद्ध ! इसे मानव निर्मित कहे या नियति की व्यवस्था परिवर्तन !
जो भी हो लेकिन आज मनुष्य को वैज्ञानिक प्रतिभा की कमी बेहद खल रही है ! आज जिन्हें समाज अपना आदर्श समझता है उनका कोई अर्थ नहीं ! अस्तित्व के इस लड़ाई मे गाने बजाने, नाचने वालों, खेल खिलाड़ियों और नेताओं की क्या भूमिका है ! यह किसी से छुपा नहीं है !
गलती की है तो कमी अवश्य खलेगी !
अभी भी वक्त है हमें सामाजिक ताने बाने और आदर्शो की व्यवस्था को पुनः उसी पुरातन और सनानत राह पर लाना होगा जहाँ विचारकों, बुध्दिजीवियों, और वैज्ञानिको को प्राथमिकता मिले उन्हें बच्चों का आदर्श बनाया जाये !

सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे संतु निरामयाः !
परमात्मा सबका कल्याण करें !

वीरेंद्र विश्वमित्र
जय श्रीराम 🙏🙏

No comments:

Post a Comment

hi freinds come with me.